देश के लिए अपना राजनीतिक एजेंडा छोड़े सरकार!

देश के लिए अपना राजनीतिक एजेंडा छोड़े सरकार! 



 


 अचानक घोषित लॉकडाऊन की वजह से भारी संख्या में पलायन के बावजूद देश के विभिन्न क्षेत्रों में आज भी लाखों मजदूर फंसे हुए हैं। अब उनके पास खाने को राशन नहीं है। यह समस्या उन सरकारी दावों की पोल खोल रही है जिसमें यह बयान दिए जा रहे थे कि शासन उन सब को भोजन उपलब्ध करवा रहा है।


 तभी तो सूरत और दिल्ली में हजारों की संख्या में भूखे मजदूर सड़कों पर आकर तोड़फोड़ आगजनी करने लगे और अपने घर जाने की मांग करने लगे। ऐसी घटनाएं कई राज्यों में हो रही है जिसे पुलिसिया कार्यवाही कर शांति स्थापित किए जाने के दावे किए जा रहे हैं। 



उधर पंजाब में भी निहंग सिखों द्वारा लॉकडाउन में बवाल करने का समाचार है। सरकार शेल्टर होम्स में लोगों की देखभाल और भोजन मुहैया करवाने का जो दावा कर रही थी, वह दावे भी अब खोखले साबित हो रहे हैं। क्योंकि उन शेल्टर होम्स में लोगों को बेहद खराब खाना परोसा जा रहा है।



 केंद्र सरकार ने एक करोड़ 70 लाख करोड़ रूपये का राहत पैकेज देने की घोषणा की थी लेकिन इतने दिनों बाद भी उससे कहां क्या राहत पहुंचाई, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। देश के अधिकांश गरीब और मजदूर स्थानीय सरकार के बजाय स्वयंसेवी संस्थाओं या व्यक्तिगत रूप से दी जा रही मदद से जिंदा हैं। केंद्र सरकार के पास प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न मौजूद है लेकिन उसकी वितरण प्रणाली अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में सक्षम नहीं है। ऐसे में देश के गरीब का क्या होगा, यह कहना बड़ा मुश्किल है। इस विकट परिस्थिति में तो देश को उसके बड़े दुष्परिणाम भुगतने का खतरा बराबर बना हुआ है। लेकिन बड़े दुख की बात है कि इस विषम परिस्थिति में भी केंद्र अपने राजनीतिक एजेंडे का मोह पाले हुए हैं। इस लॉकडाउन में भी भाजपा नेता प्रिंटिंग प्रेस खुलवा कर मोदी जी के फोटो छपवा रहे हैं और उसे राहत शिविरों में बंटने वाले भोजन पैकेट पर लगवा रहे हैं। कुछ भाजपा नेता लोगों को इकट्ठा कर जन्मदिन मना रहे हैं जैसे उनके लिए लॉकडाउन का कोई औचित्य नहीं है। भाजपा नेता और सरकार इस बात को लेकर जरा भी चिंतित नहीं दिखाई दे रही है कि जिस महामारी की चपेट में यह देश है उससे लड़ने के लिए देश में न तो पर्याप्त जांच किट है, न पर्याप्त मेडिकलकर्मी, न भोजन वितरण की ठोस व्यवस्था और न ही सुद्रढ़ नीति। ऐसे में अगर इस महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया तो उसके परिणाम क्या होंगे, इसको लेकर कोई भी गंभीरता से विचार करना नहीं चाहता है।



 अगर सरकार देशवासियों के प्रति पूरी तरह ईमानदार है तो उसे अपना अपने सारे विकल्प खुले रखने चाहिए। खासकर उसे अपने आलोचकों के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए। उन आलोचकों को ध्यान से सुनना चाहिए और उनकी जो सलाह देश हित में हो सकती है उसे अमलीजामा पहनाना चाहिए। इसी के साथ ही भाजपा को सबसे पहले अपने आईटी सेल को तुरंत बंद करवा देना चाहिए जो आलोचकों को ट्रॉल करती है। इससे देश में सकारात्मक वातावरण बनेगा और समस्याओं के समाधान की दिशाएं खुलेंगी।