कोरोना मामले में WHO की भूमिका संदिग्ध!
(12 वीं साइंस - कोर्स की किताब )
कोरोना मामले में अब WHO की भूमिका को लेकर बड़े गंभीर सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका ने WHO पर इस मामले में जो चीन का साथ देने और कोरोना के मामले में जानकारी छुपाने का आरोप लगाया है, वह न सिर्फ बहुत गंभीर है बल्कि इस संगठन की विश्वसनीयता को भी संदिग्ध बनाता है।
अमेरिका का स्पष्ट आरोप है कि ने दुनिया को इस संक्रमण के बारे में WHO ने वक्त पर नहीं बताया। उसका यह भी आरोप है कि जब ताइवान ने इस मामले में WHO सूचित किया तो उसने उसकी सूचना को नजरअंदाज किया गया । इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ की सबसे खतरनाक बात यह रही कि उसने 24 जनवरी को अपने बयान में यह कहा कि इस वायरस के इंसान से इंसान में फैलने का कोई संकेत नहीं है। यह कोई पहला मामला नहीं है जब WHO पर इस तरह की भ्रामक जानकारी देने का आरोप लगा है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों की मानें तो डब्ल्यूएचओ को एक ईमानदार संगठन समझना बहुत बड़ी भूल हो सकती है क्योंकि डब्ल्यूएचओ पर भी राजनीति और धन का प्रभाव है। इसी प्रभाव के चलते वह वैसे ही जानकारी प्रसारित करता है जिसमें किसी विशेष देश का या दवा निर्माताओं का हित छुपा होता है। गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व डब्ल्यूएचओ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में खराब पानी के वजह से हेपेटाइटिस बी की के कारण एक बड़ी आबादी समाप्त हो सकती है। इस खबर को इतने बड़े पैमाने पर प्रसारित व प्रचारित किया गया था कि लोगों ने परिवार सहित इस बीमारी से बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी के टीके लगवाने आरंभ कर दिए थे। शुरुआत में इस टीके के लिये 6 हजार रुपये लिए गये लेकिन कुछ दिनों बाद इन टीकों की कीमत 2000 हो गई थी। देश में अचानक लोगों ने आरओ लगवाने आरंभ कर दिए थे जो आज भी जारी है।खबरों के माध्यम से बाद में पता चला कि कुछ बहुराष्ट्रीय दवा निर्माताओं के पास हेपेटाइटिस बी के टीकों का एक बड़ा स्टाक इकट्ठा हो गया था। वे उसे कहीं खपाना चाहते थे। उनकी नजर में भारत में इसकी खपत हो सकती थी इसलिए उन्होंने WHO को मोटी धनराशि देकर भारत के संबंध में इस तरह की रिपोर्ट बनवाई ताकि भारत में उनकी दवा का स्टॉक बेचा जा सके। उन दवाओं की खपत के बाद आज तक भी WHO ने उस बीमारी को लेकर भारत में कोई चेतावनी जारी नहीं की। इसलिए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि निश्चित रूप से WHO ने किसी लालच में ही रिपोर्ट जारी की थी।
यहां ये बात भी गौरतलब है कि WHO कोरोना के क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों की कई बार प्रशंसा कर चुका है। जबकि सच्चाई यह है कि पिछले करीब 70 दिनों में भारत में मात्र सवा लाख टेस्ट ही हुए हैं जो देश की 130 करोड़ आबादी में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अभी भी देश के संपूर्ण मेडिकल स्टाफ के पास कोरोना से लड़ने के लिए PPE किट और मास्क नहीं है जिसकी शिकायतें लगातार मिल रही हैं।जिसके कारण कई डॉक्टर अपनी जान गवां रहे हैं, कई नर्सों ने इस्तीफा दे दिया है, कई डॉक्टर अपना कर्तव्य निभाने के बजाए नौकरी से इस्तीफा देना ज़्यादाbबेहतर समझ रहे हैं, तो ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि WHO अपने किस मापदंड के तहत भारत के प्रयासों की सराहना कर रहा है। कहीं ये भारत को भ्रमित रखने के उद्देश्य से कीगई सराहना तो नहीं है ?
निश्चित रूप से इसके पीछे WHO का कोई विशेष उद्देश्य निहित है जिसे समझा जाना चाहिए।
ऐसे में जब कोरोना को लेकर जो आरोप WHO पर लग रहे हैं, उससे सभी देशों को सचेत होने की आवश्यकता है क्योंकि WHO कभी भी विश्व समुदाय के साथ विश्वासघात कर सकता है।