लॉकडाऊन के बाद होगी मज़दूरों के श्रम पर डकैती ?

लॉकडाऊन के बाद होगी मज़दूरों के श्रम पर डकैती ?



लॉकडाऊन की वजह से देश को आर्थिक रूप से जो नुकसान हो रहा है, वह सबसे बड़ी चिंता का विषय है। आंकड़े बता रहे हैं कि देश में अब तक की ऐतिहासिक बेरोजगारी है। लॉकडाऊन के बाद इस बेरोजगारी को खत्म करने और आर्थिक क्षेत्र को गति देने के उद्देश्य से श्रम मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट तैयार किया है जिसे लोकसभा में पेश किया जाना है।


 इस प्रस्ताव के मुताबिक लॉकडाऊन खुलने के बाद 8 घंटे की शिफ्ट को 9 घंटे किया जा सकता है। इसमें यह भी प्रावधान होगा कि मालिक इसे बढ़ाकर 12 घंटे का वर्किंग डे भी कर सकेंगे, जिस पर कोई आपत्ति नहीं ली जा सकेगी। अर्थात पहले जिस व्यक्ति के शिफ्ट 8 घंटे की मानी जाती थी वह 9 घंटे से 12 घंटे तक की हो सकती है। इस अधिक समय के लिए वह ओवरटाइम की मांग भी नहीं कर सकेंगे । सूत्रों के अनुसार इस प्रस्ताव में कुछ विशेष श्रेणी के कर्मचारी जो इमरजेंसी ड्यूटी या प्रिपरेटरी वर्क में संलग्न हैं, उनकी ड्यूटी 16 घंटे की हो सकती है। 



सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रस्ताव में न्यूनतम वेतन को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। इसमें यह कहा गया है कि न्यूनतम वेतन भौगोलिक स्थिति के आधार पर तय किया जाए। इसके लिए तीन श्रेणियां बनाई गई हैं- महानगर,नान मेट्रो सिटी और ग्रामीण क्षेत्र।



 यह प्रस्ताव लॉकडाऊन के बाद मजदूरों के श्रम की खुली डकैती कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की दिशा में एक खतरनाक गैर मानवीय कदम हो सकता है। इससे न सिर्फ मजदूरों का शोषण होगा बल्कि उनके लिए रोजगार के अवसर भी कम होंगे। अगर सरकार काम की शिफ्ट का समय 8 घंटे से घटाकर 6 घंटे कर देती तो इससे एक ही जगह पर दो व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा अर्थात ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। ध्यान रहे कि सारी दुनिया के मजदूरों ने वर्षों तक अपने हक के लिए संघर्ष कर काम के 8 घंटे तक करवाए थे लेकिन अब सरकार उस संघर्ष की लड़ाई से मिले हक को भी समाप्त कर देना चाहती है। दुर्भाग्य की बात है कि जिन मजदूरों के मतों का सरकार बनाने में अहम योगदान होता है, आज संकट के दौर में सरकार उनके साथ नहीं बल्कि चंद पूंजीपतियों के साथ खड़ी दिखाई दे रही है।